जानलेवा यें तन्हाईया नहीं भाती
क्यूँ सदा भी कोई इधर नहीं आती
एक जरा सी किरण भी उजाले की
इस तीरगी मैं नज़र नहीं आती
इस तीरगी मैं नज़र नहीं आती
कुछ तेरा गम कुछ अपनी मसायल
नींद अब शब भर नहीं आती
नींद अब शब भर नहीं आती
जब आने का वादा कर जाता है वो
बस फिर सहर नहीं आती
बस फिर सहर नहीं आती
वो जो कहते थे हरदम हूँ साथ
ख्वाबो मैं भी शक्ल नज़र नहीं आती
ख्वाबो मैं भी शक्ल नज़र नहीं आती
दिल बेकरार पुरजोर हो चला तेरा
बहलने की सूरत नज़र नहीं आती
बहलने की सूरत नज़र नहीं आती