Tuesday, February 3, 2015

तेरी हार में मेरी हार है यही सोच ले तो न जंग हो

 इंसान प्रकृति के दूसरे जीवों से यूँ तो बहुत से कारणों से अलग है| पर सबसे महत्वपूर्ण कारणों में एक कारण भूख भी है|
तरह तरह की भूख हैं जो इंसान का इंसान होना निर्धारित करती हैं |


इन्ही में से कुछ भूख हैं -- गीत,संगीत और साहित्य की भूख | कम या ज्यादा हो सकती हैं पर ये भूख इंसानी गुण हैं | किसी के लिए सिर्फ़ पेट भरना, और किसी के लिए स्वाद महत्वपूर्ण होता है |

कभी कभी हद से ज्यादा भूखे बावरे कहलाये जाते हैं | कभी बहुत कम खाने वाले असंवेदनशील |
इनमें से कौन सही है कौन ग़लत ये तो लम्बी बहस का विषय है | क्यूंकि दोनों ही प्रकृति प्रदत्त प्रकृति के कारण अवश है |

गीत संगीत व साहित्य की  भूख निवारण हेतु किये गए प्रयासों के परिणाम स्वरुप ही कविसम्मेलन, मुशायरे, गीत संध्या आदि कि उत्पत्ति होती है | इसी कड़ी के एक छोटे रूप नशिस्त का आयोजन कुछ प्रेमी और उत्साहित मित्रों के सहयोग से मेरे निवास स्थान पर बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर 24 जनवरी 2015 को किया गया | 
                                                      
तय ये था कि सुबह सरस्वती पूजा होगी | और शाम को एक नशिस्त | जिसका स्वरुप अपनी सुविधानुसार ये बनाया गया की सब अपने अपने रूप में माँ सरस्वती को काव्यांजलि अर्पित करेंगे जो थोड़ा बहुत कुछ लिख लेते हैं वो अपना लिखा पढेंगे | और जो दोस्त  ये ज़ेहमत नहीं उठाते वो दोस्त अपनी पसंद का कोई भी गीत संगीत गज़ल सुना सकते हैं | 
                                                           
इस नशिस्त में चार चाँद लगाने के लिए अपनी पुस्तक " मैंने आवाज़ को देखा है " के लिए भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती विजय लक्ष्मी सिन्हा जी अपनी स्वीकृति दे चुकी थी | जो हमारे लिए उत्साहवर्धक था | 
                                                            
अपनी सोसायटी के मित्रों तक ही सीमित इस नशिस्त का अहोभाग्य ही था कि गुरुवर नीरज गोस्वामी जी इत्तेफाक़न दिल्ली आए हुए थे |और उन्ही से भेंट करने शामली से पहुँचे डॉक्टर र्य मलिक के सहयोग से श्री नीरज गोस्वामी जी के इस नशिस्त में आने का सुखद सुयोग बना |                          

तथा इसी बहाने हमे श्री नीरज गोस्वामी जी के साथ साथ उनके शिष्य डॉक्टर र्य मलिक जी को भी सुनने का सुनहरा मौका मिला |
नशिस्त पूर्व निर्धारित समयानुसार लगभग शाम साढ़े सात बजे श्रीमती सुमित्रा शर्मा जी के सुगढ़ संचालन में आरम्भ हुई |
                                         
 सबसे पहले श्रीमती मुदिता जी ने की बोर्ड पर हिंदी फिल्मों के गीत " किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार जीना इसी का नाम है " की धुन बजा कर पूरे माहौल को संगीतमय बना दिया | उनकी खूबसूरत प्रस्तुति ने श्रोताओं को आन्दित कर दिया | तत्पश्चात श्रीमती रीता तोमर जी की हास्य कविता ने सभी को हँसने पर मजबूर किया | 
                                              
डॉक्टर प्रियंका जैन की कविता "मैं स्वार्थी हू..." ने दो सखियों के मध्य होने वाले परस्पर सहयोग और प्रेम का भावपूर्ण चित्रण कर श्रोताओं की पलकों को गीला कर दिया |
श्री कमल शर्मा जी ने निदा फ़ाजली जी के शेरों को समय समय पर पढ़ सभी को आनन्दित किया और मंगल नसीम जी की गज़ल
                           "हंस के मिलते है भले दिल में चुभन रखते हैं , 
                           हमसे कुछ लोग मोहब्बत का चलन रखते हैं " 
 सुना श्रोताओं का  भरपूर मनोरंजन किया | इसी गज़ल के शेर 
                         "ठीक हो जाओगे कहते हुए मुंह फेर लिया
                           हाय क्या खूब वो बीमार का मन रखते हैं" 
 ने भी सभी का ध्यान आकृष्ट किया |
                                              
डॉक्टर सुधीर त्यागी जी ने अपनी कथानक विधा में लिखी गयी कविता "अली और कली" सुना कर सबको चौंकाया | बहुत ही सुन्दर शब्द शिल्प में लिखी गयी ये कविता सभी की प्रशंसा की पात्रा बनी |
डॉक्टर सुधीर त्यागी जी की ही बेटियों पर लिखी कविता ने सभी को भावुक कर दिया | पारुल सिंह ने अपनी मार्मिक कहानी "पेशावर वाली माँ " सुनाई तो माहौल और बोझिल हो गया |
तब श्री ब्रजवीर सिंह जी के  चुटकलों ने माहौल को हल्की हास्य की  बौछारों से भिगों दिया | उन्हें सुन सहज ही अहसास हो रहा था की जीवन में हास्य का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है |
डॉक्टर शोर्य मलिक जी की गज़ल
                               "कितनी सुन्दर जोड़ी होती 
                                 मैं तेरा तू मेरी होती " 
ने श्रोताओं को खुद से बाखूबी जोड़ लिया व खूब दाद पायी | इसी गज़ल के शेर 
                                "काटे नफरत और बुराई 
                                  काश कंही वो आरी होती " 
ने खूब दाद पायी | उन्ही कि छोटी बहर की एक और गज़ल ने भी खूब दाद पायी |
                                  शोर मचा है,शोर मचा है 
                                  लगता है वो आन खड़ा है 
                                  धीरे धीरे हौले हौले
                                  इश्क़ मेरा परवान चढ़ा है  
                                  लपटें ये जो फ़ैल रही हैं 
                                   कुछ तो मेरे यार हुआ है 
                                              

डॉक्टर शौर्य मलिक के लिए ये अवसर विशेष बन पड़ा था | अपने गुरु के सामने पहली बार प्रस्तुति देना जंहा उन्हें पहले थोड़ा सा नर्वस कर रहा था,वंही गुरु का प्रोत्साहन पाकर वो एक के बाद एक शेर पर खूब दाद बटोर रहे थे |
 श्रीमती सुमित्रा शर्मा जी ने  अपनी गज़ल
                            "स्वेद-मोती की फ़सल सी दूब थी सोयी हुई
                              मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोयी हुई 
                              द्रोपदी का चीर खिंचता ही रहा,खिंचता रहा 
                              गूंगा बहरा ज्ञान था और नीति भी सोयी हुई 
प्रस्तुत की और हर शेर पर ख़ूब दाद बटोरी | इसी गज़ल के शेर 
                               "इन अंधेरो को झटक कर उठ खड़ी होगी ज़रूर 
                                है तमस की  क़ैद में जो तीरगी सोयी हुई "
पर उन्होंने खूब वाहवाही पायी |
                                              
 श्रीमती विजय लक्ष्मी सिन्हा जी ने अपनी दो लघुकथाएं  "रीता और रवि " तथा
 "मज़ाक " सुनाई ,"रीता और रवि" में जहाँ लड़के लड़की के भेद पर कटाक्ष था वंही "मज़ाक" कहानी इंगित कर रही थी कि  खेल खेल में कही गयी झूठी बात कैसे आप को ही मज़ाक का पात्र बना सकती है | 
उन्होंने अपने सरल तथा मधुर  पाठन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया | श्री सुनोद तोमर जी ने अपने निराले अंदाज में कविताएँ पढ़ी। उनके खास तरीके से कविता पर्चियों पर लिख कर लाने के अंदाज ने सभी को खूब गुदगुदाया 
                                                 
श्री अनुज जैन जी ने मजबूर फ़िल्म के गीत " आदमी जो कहता है आदमी जो सुनता है जिंदगी भर वो सदायें पीछा करती हैं " को सुना सभी का भरपूर मनोरंजन किया और वाहवाही पायी |
सभी का कहना था की इस गीत के इतने सुन्दर बोल उन्हें आज ही बहुत अच्छे से समझ आए|
                                            
और फ़िर जैसे ही श्री नीरज गोस्वामी जी ने गज़ल पढना शुरू किया | पहली गज़ल .......
                     "नया गीत हो नया साज हो नया जोश और उमंग हो ,
                       नए साल में नए गुल खिले नई हो महक नया रंग हो
                       वही रंजिशे वही दुश्मनी हैं मिला ही क्या हमे जीत के ,
                       तेरी हार में मेरी हार है यही सोच ले तो न जंग हो
                       है जो मस्त अपने ही हाल में कोई फ़िक्र कल की ना हो जिसे 
                       उसे रास आती है जिंदगी जो कबीर जैसा मलंग हो "......
 को तरन्नुम में सुनते ही हर कोई आनन्दित हो गया | अगली गज़ल 
                      "बात सचमुच में निराली हो गयी
                       अब नसीहत यार गाली हो गयी"   
                                                  
गज़ल ने खूब वाहवाही पायी हर शेर पर श्रोता झूम रहे थे| इसी गज़ल के शेर
                         "ये असर इस दौर का हम  पर हुआ ,
                          भावना दिल की मवाली हो गयी" 
                          क़ैद का इतना मज़ा मत लीजिए , 
                          रो पड़ेंगे गर बहाली हो गयी" 
एक के बाद एक गज़ल तरन्नुम में सुन श्रोता अब तक पूरी तरह झूमने लगे थे |  पूरा माहौल नीरज जी की  खूबसुरत गजलों और मधुर आवाज़ के तिलिस्म में था | 
 ऐसे में डॉक्टर प्रियंका जैन का नीरज गोस्वामी जी को गीतकार शैलेन्द्र , और गायक मौहम्मद रफ़ी का सुन्दर संगम कहना युक्तिसंगत ही था |  नीरज जी ने सभी के अनुरोध पर अपनी बम्बईया शैली में 
लिखी गयी दो गजलें 
                          "बेजा क्यूँ शर्माने का अपना हक़ जतलाने का..."
                           "बेमतलब इन्सान भिडू होता है हल्कान भिडू..."  
 प्रस्तुत कर सभी का मान भी रखा और ख़ूब मनोरंजन भी किया |  इन्ही गजलों  के एक और शेर ने श्रोताओं की ख़ूब दाद पायी |
                            " देश नहीं जिसको प्यारा
                               उसका गेम बजाने का " |
                                                

 हाल बिल्ली के भागो छिका फूटा सा था |  आज बिल्ली पेट भर खाने के मूड में थी फिर छिकें बेचारे का जो हो सो हो | 
नीरज जी बेशक़ अपनी सह्रदयता का परिचय दे रहे थे | लेकिन फरमाईशे थमने का नाम नहीं ले रही थी | होली पर नीरज जी ने अपनी गज़ल 
                        "करे जब पांव खुद नर्तन,समझ लेना कि होली हैं  " 
                          हिलोरे ले रहा हो मन समझ लेना कि होली है 
                          कभी खोलो अचानक आप अपने घर का दरवाज़ा
                          खड़े देहरी पे हो साजन समझ लेना की होली है  
                                                      
अब तक श्रोता नर्तन करने के मूड में आ चुके थे हर शेर के हर मिशरे के साथ वाह वाह कर श्रोता साथ साथ गा रहे थे " समझ लेना कि होली है ...." कोई उठने को तैयार नहीं था  हास्य प्रमुख गज़ल के साथ नीरज जी ने वायदा लिया सभी से कि ये आख़िरी हैं और जैसा की  वो कहते हैं लास्ट बट दा  नॉट लीस्ट इस गज़ल ने भी समाँ  बांध दिया |  
                           "पिलायी भांग होली में, वो प्याले याद आते हैं , 
                             गटर ,पी कर गिरे जिनमें, निराले याद आते हैं 
                             भगा लाया तिरे घर से बनाने को तुझे बीवी
                             पड़े थे अक्ल पर मेरी, वो ताले याद आते हैं "
 को सुन श्रोता हँस हँस कर बेहाल हुए जा रहे थे | 
                                           
 
दुनियादारी, प्रेम से लेकर हास्य तक की सैर नीरज गोस्वामी जी के साथ कर अब नशिस्त अपने अंतिम पड़ाव पर आ चुकी थी|

 श्री ब्रजवीर सिंह जी ने नशिस्त की शोभा बढ़ाने के लिए श्री नीरज गोस्वामी जी ,श्रीमति विजय लक्ष्मी सिन्हा जी , श्रीमति रितु सिन्हा जी ,डॉ सुधीर त्यागी जी ,श्री कमल शर्मा जी ,डॉ अशोक आनंद जी ,श्रीमती परवीन शर्मा जी ,श्रीमति मुदिता आनंद जी श्री सुनोद तोमर जी ,श्रीमति रीता तोमर जी , श्री रवि जी को धन्यवाद दिया |
                                               
साथ ही उन्होंने इस कार्यक्रम के लिए अथक प्रयास व सहयोग करने के लिए श्री पी डी गुप्ता जी, श्रीमति सुमित्रा शर्मा जी, श्री अनुज जैन जी और डॉ प्रियंका जैन जी का शुक्रिया अदा किया | रात्रिभोज पर गपशप के बाद सभी ने जल्द ही फिर किसी ऐसे ही कार्यक्रम का आयोजन करने के वादे के साथ विदाई ली |  
                                                                                                                                पारुल सिंह