Saturday, August 3, 2019

Review movie:khandani shafakhana

https://youtu.be/YA_meslf-aU


https://www.youtube.com/user/pbsingh31

सावन सबका हो


सभी सुहागनों को सावन की हरी मेहंदी,चूड़ी और साड़ी की बधाई!! 🙄 क्यूँ भई? सावन तो सबका है,सिंगल का भी married का भी। मौसम,हवाएं, चाँद,सूरज सबको मुबारक। मुझे सजने सवरने रंगों से परहेज या आपत्ति नही। बहुत पसन्द हैं,पर अपने ही दिल की उमंग तक को केवल इस लिए महसूस करना के किसी से हमारा कोई ख़ास सम्बन्ध है,ये भला कैसे हो सकता है?
बारिश देख कर मन तो झूले झूलने का सबका हो सकता है। सावन मैरिटल स्टेटस और जेंडर की क़ैद से आज़ाद होना चाहिए। दिल की ख़ुशी मे if, but नही होते। सबको सावन मुबारक💖
पारुल सिँह❤️

Wednesday, January 2, 2019

दिल ही तो है 1

नए साल का दूसरा दिन था वो भी आज ही की तरह।2 जनवरी 2017। शाम हो गई थी और अभी भी मेरी पैकिंग करनी बाकी थी। क्योंकि अगले दिन मुझे हॉस्पिटल जाना था,जँहा 5 जनवरी को मेरी ओपन हार्ट सर्जरी होनी थी। मेरे हर्ट की 2 वाल्वस लीक कर रही थी और इनमें से mitral वाल्व सीवियर लीक कर रही थी जिसे बदल कर आर्टिफिशियल वाल्व डाली जानी थी। इस लिकेज जिसे mitral regurgitation कहते हैं, की वजह से मेरे हार्ट और lungs पर भी काफी बुरा असर आलरेडी हो चुका था, डॉक्टरस के अनुसार। खैर ये बातें डॉक्टर्स के ऊपर ही छोड़ देते हैं। मुझे इन सब medical बातों और टर्म्स में से वो ही बातें अपील करती हैं। जो thrilling हों। जैसे, ये बहुत सीवियर डैमेज मेरी बॉडी को दे चुके थे,मेरी साँस उठने, चलने के साथ साथ अब बोलने पर,बाते करने पर भी फूलने लगी थी, मैं जो पिछले एक साल से बहुत बीमार हूँ और पिछले 6 महीनों से तो लगभग बेड पर ही हूँ।.. 
ऐसी बातें मुझे थ्रिल देती थी। मुझे कोई बीमार होने का शोक नही है,पर हो जाऊं तो रोने,कराहने की आदत नही मुझे पसंद नही आता।
मेरे जैसे लोगो को फ़िल्मी कहा जाता है। हो सकता है,मैं फ़िल्मी हूँ।पर मैं इस से अलग नॉर्मल लोगो जैसा behave चाहूँ तो कर नही पाती ज़्यादा देर ।पता नही क्यूँ। 
मैं ये सब किसी की सहानुभूति लेने के लिए करती हूँ क्या? जब मैंने ये सवाल ख़ुद से पूछा तो जवाब आया कि ये तो आखिरी चीज़ होगी सहानुभूति में किसी की लेना चाहूँ तो।
थक हार कर फिर वो ही बन जाती हूँ, जैसी में हूँ। 
कुल मिला कर इस थ्रिल पसंद मोहतरमा को एक साथ बहुत सारे थ्रिल प्रोजेक्ट मिल गए थे।
Psychology कहती है कि अपनी या किसी नज़दीकी की ऐसी बीमारी के बारे में सुन कर acceptance आने में वक़्त लगता है। मेरी भी ऐसी बेचैनी वाली रातें थी जब आप सोचने लगते हो अपने पीछे छोड़ जाने वाले अपने बच्चों और माँ बाप और अपने पति को । पर उन कुछ घंटों का मैं जिक्र नही करना चाहती वो नितांत मेरे अपने थे।
 और वैसे भी सच्ची बात ये है कि बोरिंग थे, उन मे ये थ्रिल नही था ना कि मुझे 'जीने की राह' मूवी की तनुजा जैसी बीमारी थी जो ज़रा सी इमोशनल या उसकी गैरमर्ज़ी की बात सुनते ही हाँफने लगती थी। या 'मिली' फ़िल्म की जया भादुड़ी की बीमारी थी कि वो कुछ दिनों में दुनिया को अलविदा कहने वाली है।
या फिर हमारे दौर की फ़िल्म 'बलमा' की आयशा जुल्का वाली बीमारी हो कि उसका हवा पानी बदलना होता है। तीन फिल्में एक मैं, बहुततत्त नाइंसाफ़ी थी।
घर वाले मेरे पीछे छुप कर रोते थे या आपस में चिंता करते थे। मुझे नही मालूम, न मैंने जानने की कोशिश की। कहा ना, मुझे तो अपने थ्रिल को जीने से फ़ुरसत नही थी।
पिछले 6 महीने में बिस्तर पर पड़े पड़े मैंने यूट्यूब के सब मुशायरे और लोंगो के इंटरव्यूज़ जब ख़ूब देख लिए तो 
Shuruti arjun anand नाम के ब्यूटी चैनेल पर हर तरह का स्किन केअर और मेकअप मैं सीख चुकी थी। फ्री में मेकअप सीखा जा सकता है किया नही जा सकता।सो इस बीमारी का पता लगते ही,एक दिन dr की विज़िट के बाद मैंने एक मॉल की तरफ़ अपनी कैब मुड़वा दी।
अपनी यूट्यूब जानकारी का उपयोग कर मैंने साढ़े तीन हजार रुपये के कॉस्मेटिक्स ख़रीदे। मॉइस्चराइजर की जगह ग्लिसरिन और गुलाबजल का मिक्सचर लगाने वाली मैं दिल पर हाथ रख पहली बार इतने रुपये मेकअप पर खर्च कर पाई।
घर जाते वक़्त फोन पर मैंने अपने dr को भी तबीयत पूछे जाने पर बताया कि dr बहुत शांति है दिल को आज,परफ़ेक्ट धड़क रहा है पति के पैसे खर्च किये हैं।
सो सर्जरी का मालूम होने से सर्जरी होने तक हॉस्पिटल में भी मैं सुबह उठते ही नहा कर सबसे पहले मेकअप करती थी। सर्जरी के बाद भी जब क्रिटिकल केअर और आई सी यू से रूम में शिफ्ट हुई तो मेकअप करती थी।घर वापस आने पर ते क्रम कुछ ढीला हुआ,क्यूँकि तब एक तो आपके पैन किलर्स बंद हो जाते हैं और कुछ ऑफ्टर सर्जरी इफैक्ट्स भी होते हैं।
एक अलग तरह का एनर्जी इस रूटीन से मुझे मिलती थी अब ये वास्तव मैं क्या था ये तो कोई साइकोलॉजिस्ट ही बता सकता है, बहरहाल मैं खुश थी।
घर वालों को जितना इमोशनल ब्लैकमेल मारा जा सकता था मैं कर रही थी।
हर किसी को बाक़ायदा छोटी ऊँगली पर नचाया जा रहा था। अरे मैं क्या करती वो तो इस से ख़ुश थे। तो बेसिकली तो मैं उन्हें ख़ुशी ही दे रही थी।
जो स्पेशल ट्रीटमेंट मिल रहा था मुझे उस में मज़ा आ रहा था।
इन बीते दिनों बिस्तर पर अकेले पड़े पड़े इतनी तकलीफें झेलने के बदले अब मज़े के दिन आ गए थे। जिन रिश्तों से मिली कुछ तकलीफे दिल में थी,वो भी उनकी मजबूरी समझ कर भुला दी थी।मजबूरी इस लिए कि मुझे कोई दुःख देना या मेरे साथ कुछ बुरा करना भगवान के अलावा किसी इंसान के लिए बहुत मुश्किल है। लोग चाह कर भी मेरे साथ बुरा नही कर पाते। सो जो कर पाया होगा तो जरूर कोई बहुत बड़ी मज़बूरी उसकी रही होगी मैं ये सोचती हूँ,  हाँ नही तो। 
ख़ैर, 2 जनवरी 2017 की शाम को विवेक (हिंदी में मेरी जेठानी का बेटा) (इंग्लिश में आप समझ लो वो ब्रदर इन ला और सिस्टर इन ला वाले झग़डे।) आ गया,बिन बुलाए ही कि चाची मुझे मालूम था ये काम मुझे ही करना है। उस ने और संगीता( इनसे मुलाकात बाद में कराऊँगी,अभी बस ये समझ लें कि ये एक रिश्ते से मेरी भाभी लगती हैं और बहुत ही प्यारी और हँसमुख लड़की है जिसने सर्जरी के बाद मेरी बहुत देखभाल की और हंसाया भी)  ने मेरे कुछ कपड़े, रिपोर्ट्स,दवाएं और वो ही थर्मस वगैरह जो रखते हैं 

हॉस्पिटल के लिए वो सब पैक कर दिया। हालाँकि इन सब की हॉस्पिटल में कुछ भी जरूरत नही पड़ी। फ़ाइव स्टार हॉटेल की तरह ही होते हैं फ़ाइव स्टार हॉस्पिटल। सब कुछ वँहा मिलता है।और कपड़े तो वो आपको शोले फ़िल्म के जय वीरू वाले पहना देते हैं जाते ही। इस दिशा में हॉस्पिटलस को काम करना पड़ेगा अभी बहुत थोड़े अच्छे अट्रैक्टिव बल्कि डिज़ाइनर कपड़े उपलब्ध कराने चाहिए।हाँ नही तो, सेल्फ़ी फीकी फीकी आती है। मेरा तो चलो कुछ नही मैं तो हूँ ही बहुत सुंदर ऊपर से उन दिनों मेकअप भी कर रही थी। आँखे भी बड़ी बड़ी हैं।
मैं उन दिनों रोज का एक वीडियो शूट करती थी व्लोग कह सकते हैं उसे। अपनी बड़ी बेटी को रोज की गतिविधियाँ बताने के लिए।पर उसे कभी भेजे नही। दिसंबर के अंत में जब वो घर आई तब ही उसे सर्जरी के बारे में बताया और उसे वीडियोस दिखाए। और एक जनवरी को ही उसे वापस भी भेज दिया। वो यँहा रहती तो मुझे चिंता होती रहती हॉस्पिटल में उसकी। जँहा वो पढ़ती हैं वँहा उसका कॉलिज हैं दोस्त हैं। सो मैं टेंशन फ्री थी।
रात को हम चार पाँच लोगों ने ख़ूब गप्पे मारे, खूब हँसे।संगीता ने कुक से मेरी पसंद का खाना बनवाया। और सबके फोन कॉल भी आते रहे।कि आल द बेस्ट ठीक हो जाओगी। मेरे मम्मी पापा कल हॉस्पिटल ही पहुँचने वाले थे।
मैं डॉक्टरस की pet हूँ।मुझें डॉक्टर जो भी बताते हैं वो सब सच लगता है। उनके निर्देशों का भी मैं अक्षरशः पालन करती हूँ।फिर घरवाले चाहे जो कहें। इस से मेरी फ़िक्र ख़त्म हुई और dr की शुरू हुई मुझे ऐसा ही लगता है।
मेरी खास पैकिंग तो 3 जनवरी की सुबह हुई। मेकअप किट। मेकअप कर लेने के बाद। 3 जनवरी को क्या हुआ वो 3 जनवरी यानि के कल ही बताऊंगी। कुछ फोटोज़ साथ लगा रही हूँ। 1 और 2 जनवरी 2017 के। देखिए अपनी दिल की बीमार दोस्त को। 😊😃
Happiness always
🍀पारुल सिँह🍀





Monday, October 30, 2017

रात

रात फ़कत रात नही हुआ करती
नशा होती है
और ये नशा मेरे सर चढ़ कर बोलता है
मुझे रात में बस एक ही बात पसंद नही
और वो है,सोना
किसी के लिए रात
आबिदा परवीन है
किसी के लिए मेहदी हसन
तो किसी के लिए जगजीत सिंह
मेरे नजदीक रात है
लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो ना हो..
रात उडती हुई बदली है एक
जो ऊंचा उड़ा ले जाती है
किसी के लिए ये बदली 
सिगरेट के धुएं से बनती है। तो 
किसी के लिए स्कॉच या व्हिस्की से
किसी के लिए कॉफी के झाग से
मेरे नजदीक ये बदली चाय से उठने वाली भाप है
किसी के लिए रात, रात की रानी होती है
किसी के लिए गमकता फूटता महुआ 
किसी के लिए हार-सिंगार होती है,तो
किसी के लिए रात चम्पा हुआ करती है
मेरे नजदीक रात रजनीगंधा है
रात, रात नही
यादों का मुशायरा होती है
रात में तसव्वुर की बज़्म सजती है
एक के बाद एक यादों की ग़ज़ले पढी जाती है
रात बैतबाजी होती है जिसमे
बहके हुए दिल को 
खुद ही जवाब दे देकर
समझाते हैं।
कहने को तो रात मौसम के हिसाब
से छोटी बड़ी होती हैं।
पर हिज्र की रातें
सबसे लम्बी रातें होती हैं।
रात के दामन में खुद को ढूंढना 
सबसे आसान तरीका है खुद से मिलने की।
🍀पारूल सिंह 🍀
 

Monday, October 23, 2017

आवश्यकता निमित एक देह मात्र मै

आवश्यकता निमित एक देह मात्र मै 
....
 ....
 इसके आगे लिख नहीं पाती
  जब जब भी
 अंतर्मन में भावो का बवंडर उठता है 
इतना तेज होता है कि
 शब्दों के सांचो मे
 भाव टिक ही नहीं पाते 
भाव ममता , स्नेह और प्यार के
 जिन पर अपने व्यर्थ होने का भाव भारी है
 अंतर्मन में
 मेरे "भाव" "शब्द" और "मै" 
हम तीनो ही प्रसव पीड़ा से गुजरते है
 पर कविता कागज पर नहीं आ पाती
 देर सवेर इस  पीड़ा से गुजर
 हर कविता अंतर्द्वंद  जीत जाती है 
किन्तु मेरी इस  कविता की किस्मत मे
 केवल प्रसव पीड़ा है
 ये  आकर रूप नहीं ले पाएगी 
ये आज भी मेरे साथ है
 "मै" ,मेरे "भाव" और "शब्द" 
हम तीनो  ही
 आज फिर इस प्रसव पीड़ा से गुजरे हैं 
 इसी पीड़ा मे  बुदबुदाती रही हूँ  
आवश्यकता निमित एक देह मात्र मै
 ....
......
इसके आगे आज भी नहीं लिख  पाई .....
पारूल सिंह