जो गुजरे हम पे वो कम है
तुम्हारे गम का मौसम है
गम का कोई मौसम नहीं होता गम आता है तो किसी भी मौसम को गम का मौसम बना देता है वैसे भी आजकल दिल्ली मे तो गर्मी का मौसम है,भीषण गर्मी पड़ रही है। जुलाई के महीने मे भी ऐसी सूखी गर्मी पड़ा करती है भला ? अरे जुलाई मे तो भीगी भीगी गर्मी, कुछ ठंडी ठंडी गर्मी,कुछ उमस भरी गर्मी हुआ करती थी। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ गयी है,धरती आग का गोला बन जानी है एक दिन। लोगो को पर्यावरण की परवाह ही नहीं। इतना प्रदूषण,जंगलों का काटना सब अपने लिए ही खड्डे खोद रहे हैं हम।
खड्डे तो इंसान इंसानो के लिए भी खोदता है,उस मे चाहे एक दिन खुद ही गिर पड़े कोई परवाह नहीं। बस कोई पडोसी या रिश्तेदार बातों मे,रहन सहन मे, हमसे आगे न निकल जाये। निकला तो वो ही दुश्मन हमारा हमसे पीछे जो है वो हमारी आँख का तारा,वो हमे सबसे प्यारा। बड़ा अच्छा लगता है उससे मिलना और बात करना। अपनी अक़्लमंदी और रुतबे की धोंस बुद्धिजीवी वार्तालाप के रूप मे उस पर झाड़ कर।
क्या हुआ ?? सही सही सी ही हैं सारी बातें जो मैं कह रही हूँ पर तारतम्य कुछ भी नहीं ? कंही से कंही पहुँच रही हूँ ? हाँ, ये ही बताना चाह रही हूँ कि हमारे मन मे विचार एक डाल से दूसरी डाल पर फुदकने मे चिड़िया से भी काम वक़्त लेता है। और जो विचार हमारे मष्तिष्क मे चल रहा होता है बस वो ही विचार उस वक़्त संसार का सबसे गंभीर,आवश्यक तथा ज्वलंत विचार होता है ,पर जाने क्यों अगले ही क्षण वो ही विचार विचार करने लायक भी नहीं रहता , ये गंभीर ,आवश्यक तथा जवलंत विचार का हार किसी दूसरे विचार के गले मे जा गिरता है। हम एक दिन मे कितनी बाते सोचते हैं समझदार मान कर स्वयं को कितने सांसारिक और पारिवारिक विषयो पर खुद को सही और दुनिया को फजूल साबित कर आत्ममुग्ध हो लेते है और अपना कई किलो आत्मविश्वास इन विचारो से ही घटा बढ़ा लेते हैं।
जिन विचारों का हमारे जीवन से और विशेषकर किसी खास पल या दिन से कोई सीधा सरोकार नहीं होता वो ही बाते कितना अच्छा महसूस करा देती हैं हमें और कई बार ऐसा धोबी पाट मारती हैं कि क्या दारा सिंह मारते होंगे। जिस बात से हमारा लेना एक ना देना दो वो ही बात हमे नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित करती है
मैं अपने कल के अनुभव से बताऊँ तो क्या क्या नहीं सोचा मैंने और क्या क्या उसके असर मेरे जीवन मे लिए हुए बड़े से बड़े और छोटे से छोटे फ़ैसले पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते रहे तब भी जब मैं ये बात समझ कर मन मे आये विचारों को रोकने और टोकने मे भी लगी रही।
मैं अपनी छोटी बेटी चाँदनी को रोज ग़ाज़ियाबाद से ग्रेटर नोएडा स्कूल लेकर जाती हूँ उसका स्कूल खत्म होने तक वंही इंतज़ार करती हूँ, आने जाने के लिए कभी गाड़ी कभी ऑटो का इस्तेमाल करती हूँ,कभी गाड़ी? हाँ जब पतिदेव को गाड़ी की आवश्यकता न हो तो गाड़ी वर्ना ऑटो (कौन है जिसे इस गर्मी मे गाड़ी की आवश्यकता न हो ? )
कल सुबह चांदनी को स्कूल लेकर जाने के लिए निकलने मे दस मिनट लेट थी कोई नई बात नहीं थी पर रोज की भी नहीं थी। ऑटो वाले के नीचे से दो फ़ोन आ चुके थे ,इसे जल्दी क्या है भला मैं चाहे एक घंटा लेट निकलूँ ?इसे तो एक मुस्त किराया इसका मिलेगा ही लुढ़कते पुड़कते हम दोनों माँ बेटी पहले से ही स्टार्ट ऑटो मे बैठ गए
क्या टाइम हो गया ऑन्टी जी ?
नौ चौबीस हुए हैं।
नौ चौबीस ?हे भगवान आज मैं कुछ ज्यादा ही लेट नहीं हो गई ,दस बजे पहुँचना है एक घंटे का रास्ता है ,अरे तो क्या हुआ कल से ही तो स्कूल दस बजे का हुआ है साढ़े दस भी पहुँच गयी तो चलेगा। हे साढ़े दस क्यूँ ? अभी नौ चौबीस हुए हैं ,दस चौबीस पर पहुँच जायेंगे सिर्फ इक्कीस मिनट लेट।
अभी पौने दस तो नहीं बजे ना ? ये राजू था ऑटो ड्राइवर
नहीं अभी तो पंद्रह मिनट हैं लगभग पौने दस बजने मे
भाई तो ऑटो ड्राइवर है पर इतना तो मालूम है की जब नौ चौबीस बजते है तो पौने दस नहीं बजते (मन मे )
वो एक और मैडम जाती हैं यँहा से नोएडा पौने दस बजे मै सोच रहा था उन्हें भी ले लेता
अभी तो नहीं ले सकता ना पौने दस बजने मे तो टाइम है। मुझे समझ ही ना आया कि ये पूछ रहा है या मुझे बता रहा है
मैं चुप रही मुझे कुछ और ही सोचना आ रहा था ये पूरे मुँह पर दुपट्टा लपेट कर जो निकलती हैं लड़कियां ये कैसे करती हैं
मैं दुपट्टे के साथ बिजी थी
आंटी जी उन्हें नहीं ले सकता ना ?
नहीं देर हो जायेगी हम तो पहले ही लेट हैं "मुझे बोलना ही पड़ा
हाँ वो ही तो मैं कह रहा था
मैं : (मन मे )आये हाये पैसे तो पूरे मैं दूँगी, इतनी लम्बी सवारी मिल गयी तो भी ये अपने रेगुलर कस्टमर को भी नहीं छोड़ना चाह रहा
दो दो कमाई चाहिए
वैसे क्या गलत रहा था वो मैं देर मे थोड़ी और देर कर लेती तो मेरा क्या बिगड़ जाता
उसे क्या मतलब कि मुझे टाइम से जाकर क्या करना है और मुझे क्या मतलब कि उसे ज्यादा रूपये मिल जाये
हम सब अपनी अपनी तरह से दुनिया चलाने की पूरी कोशिश कोशिश करते हैं दुनिया चलती नहीं वो अलग बात ठहरी और कोशिशे रूकती नहीं ये भी सत्य है।
इस रास्ते से लूँ आज इंदिरापुरम वाले ?
देख ले
आप कह रही थी कल वाला रास्ता शुरू मे थोड़ा ख़राब है
हाँ है तो
बताओ मैडम किस रस्ते से चलूँ ?
देख ले ,इस से चल ले
अरे आप बताओ न मैडम मै तो खुद ही फ़ैसला नहीं कर पा रहा हूँ
इंदिरापुरम से ही चल देर मे और देर सही रास्ता तो सही है
ट्रैफिक मिलेगा मैडम
हुम्म्म
वैसे ऑटो तो निकल ही जायेगा ट्रैफिक मे इस्कूटर के लिए क्या ट्रैफिक राजू बोला
चल तो फिर इधर से ही चल
झुँझलाहट हो रही है देख नहीं रहा मैं खाली नहीं बैठी हूँ एक हाथ से उड़ते दुपट्टे को मुँह पर बाँधने की कोशिश आँखों पर लगाये हुए सन ग्लासेस से बचा कर एक हाथ से चाँदनी को थामना कि कंही ये अपना हाथ पैर ना निकाल ले ऑटो से बाहर और बंध जायेगा बस फिर दुपट्टा मेरा
इंदिरापुरम के रास्ते से ऑटो बढ़ चला ट्रैफिक तो था पर इस्कूटर को क्या ट्रैफिक ?
राजू ने ऑटो नोएडा मे से निकल कर जाने के लिए मोड़ने की बजाये सीधे ले लिया
हुम्म्म ये ऑटो वाले बड़ी नाप तोल करते है रास्तो की जिसे ये शार्ट कट मानते हैं कई बार वो होता नहीं शार्ट कट
ये अब सीधे यामहा मोड़ पर निकलेगा
निकल मुझे क्या
राजू पुरे ट्रैफिक से अब तक फ़ोन पर बाते कर रहा
है पौने दस वाली मैडम के लिए उसने जुगाड़ कर ही दिया आखिर अपने किसी साथी ऑटो वाले को भेज कर
हाँ भई तू तो करेगा ही डेली कस्टमर को थोड़े ही हाथ से जाने देगा
ऑटो बार बार झटके खाने लगा था स्पीड भी कम थी
जाने क्या हो गया आज इसे
हर झटके के साथ राजू बोलता
मैं सोच रही थी ऑटो ख़राब नहीं हो सकता हम पहुँच ही जायेंगे ग्रेटर नोएडा
अरे ये वाली बिल्डिंग . . ये ही रास्ते से तो निकली थी मैं जब पहली बार ग्रेटर नोएडा स्कूल से आते हुए रास्ता भटक गयी थी
मैं कितनी बार गलत रास्ते लेती हूँ ना
पर ग़लत रास्ते की अच्छी बात ये है कि उस पर चलते ही पता लग जाता है कि रास्ता गलत है ना
एक बार तो मेरठ का रास्ता नहीं मिला था एक बार . . . कुल दस बार भूली मैं रास्ते हुम्म पता नहीं
ऑटो झटके खा रहा है
ये एक बार तेज सा एस्केलेटर ले ले तो फिर झटके नहीं खायेगा
ग्रेटर नोएडा वाला खुला रास्ता आ जाये न एक बार
ऑटो ख़राब हो गया तो?
इसे अभी मना कर दूँ क्या
दूसरा मंगा लूँ
देर हो जाएगी
हे भगवान आज न ख़राब कर आज तो जाने दे आज चाँदनी का जन्मदिन है कितनी उत्साहित है वो स्कूल मे जन्मदिन मनाने को
चॉको पाई मे उसकी जान अटकी रहती है आज उसी का बचा हुआ डब्बा ले आई है वो अपने साथ के बच्चों को देने को …मेरा प्यारा बच्चा
मैंने उसे खुद से सटा कर बैठा लिया
तू पहुँच गया मैडम को लेकर?
राजू फिर फ़ोन पर था
ड्राइव करते हुए फ़ोन करता है
मना कर दूँ क्या
पहुँच जाने दे मैडम को ऑफिस फिर कर देना
ये फ़ोन ना करता तो काफी तेज चलता अब तक यामहा चोंक पहुँच जाते हम यामहा चौंक पर बुद्ध भगवान की बड़ी बड़ी मूर्तियां हैं
सब मायावती ने बनवाया है
क्यूँ बनवाया
अब कुछ तो बनवाती ही
ये न बनवाती तो क्या बनवाती
गर्र गर्रर्र गररर्र। .... झटका। . सन्नाटा
ऑटो बंद
नोएडा सेक्टर 63
टाइम 10 बज कर 12 मिनट ……………
क्रमश: ………………………
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parul singh
बहुत रोचक यात्रा वर्णन , भाषा शिल्प और कथ्य तीनो लाजवाब। इंसानी भावनाओं को उजागर करती पोस्ट -- अगली कड़ी का इंतज़ार है -- इस इंतज़ार को लम्बा न होने देना।
ReplyDeleteAapke sansmaran hame hamesha jyada pasand hai. Kyonki aap waha aap Apna dimag nahin lagati. Jo man meinhai wo chalta hai
ReplyDelete//गम का कोई मौसम नहीं होता गम आता है तो किसी भी मौसम को गम का मौसम बना देता है//
ReplyDeleteकितनी सच्चाई है इन शब्दों में !