पुस्तक समीक्षा "डाली मोंगरे की".....
तजरबों से जो मिला हमने लिखा 'नीरज' वही
हम - ज़बाँ हैं आप मेरे, ये बहुत अच्छा हुआ
लिखना वो जो आपके नजरिये को तार्किकता से बदलने की क़ुव्वत रखता हो। आपकी सोच को दिशा दें ,सरलता दें, उसे क्षितिज के उस पार तक देखने की ताक़त दे।
नीरज गोस्वामी जी की क़िताब "डाली मोगरे की" हाल ही में मंजरे -आम पर आई है। क़िताब क्या फ़ूलो का महकता हुआ गुलदस्ता है, जिंदादिली,सकारात्मकता, और ख़ुशगवार जिंदगी से भरपूर।
शेरों - शायरी के दीवाने गजले पढ़ कर या सुन कर उस से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं,पसंद करते हैं, तो उसका आनंद लेकर वाह वाह कर उठते हैं। मगर ये क़िताब फ़क़त आनंद लेने या वाह वाह करने की नहीं है। इसे पढ़ते पढ़ते आप जान जाते हैं कि जिंदगी अपनी तमाम हैरानियों के साथ भी कितनी आसान है।
जिंदगी को बहुत हल्के -फुल्के अंदाज में मज़े से जिया जा सकता है।
शायर को जिंदगी की दुश्वारियों से इन्कार नहीं, हालात की बेरहमियों का पूरा पूरा इल्म भी शायर को है। फ़िर भी इन सभी उतार -चढ़ाव के साथ ही जिंदगी को कैसे ख़ुशी-ख़ुशी जिया जाए ये शायर ने बहुत खूबी से अपने शेरों में कहा हैँ।
कुल मिला कर के क़िताब आपको जीना सीखती है, अगर आप चाहें तो, बशर्ते आपको ये सीखने की ज़रूरत हो,लगन हो और आप इस सोच के साथ इस क़िताब को पढ़ें। वरना तो आप फ़क़त बेहतरीन गजलों का आनंद लें।
शायर ने क़िताब की शक़्ल में आईनाख़ाने में एक शम्मा रोशन कर दी है। जिसकी मद्धम मद्धम रोशनी सारे आईनो में अलग -अलग दमक रही है उनकी ग़जलों की शक़्ल में,और उनके शेर आईनों से पलट कर आने वाली सतरंगी रोशनी बन कर पूरे आईनाख़ाने को चमका रहें है । कहन में रवानगी व सादगी ऐसी जैसे इस आईनाख़ाने के बीचों -बीच लगे झाड़फानूस की काँच की लड़ियाँ हौले से हिल-हिल कर अपनी टिंगलिंग टिंगलिंग का मधुर संगीत आईनों कि रोशनी के साथ माहौल में घोल रहीं हों।
जी हाँ कुछ ऐसी ही दुनिया में पहुँच जाते हैं आप जब इस मोगरे की डाली को हाथ में थाम कर पढ़ते हैं। नीरज जी कहते हैं कि बड़ी ऑर्डिनरी गजलें हैं। ये ही तो इन गजलों की खासियत है कि ये ऑर्डिनेरी हैं। शायरी के लिए फ़ारसी में कहते हैं कि "जो दिल से उठें और दिल पे गिरे वो ही शायरी होती है"
और शायरी दिल से निकली है इस बात की तस्दीक़ उनका ये शेर ख़ुद करता है
दिल से निकली है ग़ज़ल "नीरज " देखना
झूम कर सारा ज़माना दिल से इस को गायेगा।
शायर अपने आप को बिल्कुल पीछे रखते हुए, कोई उपदेश नहीं, ना कोई सलाह,बस आईना या हक़ीक़त या जिंदगी की मुश्किलात के हल यूँ सामने रख दिए जैसे डाकिया दरवाज़े के नीचे से चिट्ठी बेआवाज खिसका जाए। आपको पहले चिट्ठी को देख कर ख़ुशी मिलती है,फिर किस की है ये जान कर ख़ुशी फिर चिट्ठी में जो लिखा हुआ है उसे पढ़ कर ख़ुशी।
ऐसी गजलें हैं नीरज जी की।
धीरे धीरे दिल में उतरती हैं। शेर जैसे मुस्कुराते हुए कान में अपनी बात कह जाते हैं। कोई भी ग़ज़ल चीखती नहीं, शोर नहीं मचाती । देश के हालत और सियासत पर कही जाने वाली गजलें जिनमें बहुतों में वक़्ती जोश, निराशा और शोर ज्य़ादा होता है,की बजाय इन मुद्दों पर शायर के शेर बहुत सादगी के साथ बयान किये गए हैं। जिसे पढ़ कर पाठक ये कह ही उठता है कि " हाँ बात तो ख़री कही हैं। "
कितनी भी सेल्फ हेल्प की किताबे आपने पढ़ी हों। लेकिन ये क़िताब जिस तरह से आपको उत्साहित करती है, वो सर्वथा भिन्न है। शायर का अनुभव और परिपक्वता हर शेर में कहती है कि कब इंकार है, दुःख और परेशानियां नहीं आती पर फ़िर भी ऐसे जीयी जाती है जिंदगी। मैंने जी है। यक़ीन नहीं ? ट्राई कर के देख़ो।
जिंदगी,सकारात्मकता के विषय में शायर का नज़रिया जरा देखेँ
हार गये तो हार गए
इसमें यूँ झल्लाना क्या
ज़ब्त करो तो बात बने
हर पल ही छलकना क्या
फूलों की सूरत झरिये
पत्तों सा झड़ जाना क्या
जिंदगी उनकी मज़े से कट गई
रंग 'नीरज'इसमें जो भरते रहे
अनसुनी कर के बशर पछ्ता रहा इस बात को
चार दिन की जिंदगी में ख़ूब कर मस्तियाँ
जिंदगी खूबसूरत बने इस तरह
हम कहें तुम सुनो तुम कहो हम सुनें
चाहते हैं आप ख़ुश रहना अगर, तो लीजिये
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
बस जरा सी सोच बदली तो मुझे ऐसा लगा
ये नहीं दुश्मन कोई सच्ची सखी है जिंदगी
मोल ही जाना नहीं इसका,लुटा देने लगे
क्या तुम्हें ख़ैरात में यारों मिली है ज़िन्दगी
प्यारी-प्यारी सी लगेगी ज़िन्दगी
आप अपने दिल को भोला कीजिये
शायर इसी दुनिया में रहता है इसलिए कई दफ़ा रिश्तों,इंसानियत और सामाजिकता को लेकर विचलित व्यथित दिखायी देता है।
अंदाजा किसे हैँ यँहा तक़लीफ़ का उनकी
क़ाबिल तो है लेकिन जिन्हें अवसर नहीं मिलते
तिश्नगी बढ़ने लगी दरिया से जब
शबनम पर ही लब धरते रहे
तुझ में तू बचा है मुझमें मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता
किये तूने बहुत एहसाँ कहाँ इन्कार है मुझको
गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं ख़ुदा लिक्खूँ
भीड़ है ये झूठ की इसमें तेरा
साथ देगी सच बयानी, भूल जा
पत्थरों से दोस्ती कर ली है जब से
आईने पहचान खोते जा रहे हैं
शायर ये भी समझता है कि हँसने गुनगुनाने या आसूँ बहाने का ही नाम जिंदगी नहीं इसलिए उनकी ग़जलें हौसलों की ,और गम ख़ुशी के फ़र्क़ को मिटाने की बात करती हैं
ज़िन्दगी भरपूर जीने के लिए
ग़म ख़ुशी में फ़र्क़ ही बेकार है
हार निश्चित है अगर तूने समर्पण कर दिया
हौसलों कि तेग लेकर लड़ पड़ो तूफ़ान से
नीरज जी की शायरी में वस्ल की शायरी तो है पर बहुत मूक बड़ी चुप चुप सी अपनी ही चाहत के अहसास भर से सतुंष्ट।
बहुत बातें छुपी है दिल में
भी तुम पास बैठो तो सुनाएँ
भीगती 'नीरज' किसी की याद सें
आँख को सबसे छुपाना सीखिये
य़ाद तुझको करने का सिला पाने लगा
मुझको आईना तेरा चेहरा ही दिखलाने लगा
बावरा सा दिल है मेरा कितना समझाया इसे
जिंदगी के मायने तुझ में ही पाने लगा
आप मुड़ कर ना देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता
तुम बिन मेरे इस दिल को
दुनिया से नाराजी है
हो ख़फ़ा हमसे वो रोते जा रहे हैं
और हम रुमाल होते जा रहे हैं
इधर ये जुबाँ कुछ बताती नहीं है
उधर आँख कुछ भी छुपाती नहीं है
ग़ैर का साथ ग़ैर के किस्से
ये तो हद हो गयी सताने की
इश्क़ कभी सहम जाता है कभी हौसलों पर काबिज़ हो जाता है ,शायद ये ही हक़ीक़त भी है
ये पता चलता नहीं है इश्क़ में
कौन पाता है लुटाता कौन है
चाहते मेमने सी भोली है
पर जमाना बड़ा कसाई है
इश्क़ का मैं ये सलीका जानता सब से सही
जान दे दो इस तरह की हो कहीं चर्चे चरचे नहीं
सियासत के मसले भी शायर को परेशान करते हैं, और दौरे हाल पर शायर सियासतदानों के साथ ही आवाम को भी कटहरे में ले आता है
हालात देश के तुम कहते ख़राब 'नीरज'
तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है
रहनुमां मक्खन का वादा करके देखो
कब से पानी ही बिलोते जा रहा है
मिल गए है रहजनों से लूटने के वास्ते
मुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए
पहरे ज़ुबानों पर लगें, हो सोच पर जब बंदिशे
जम्हूरियत की बात तब लगती है कितनी खोकली
नीरज जी कि शायरी कंही रूहानी और सूफियाना हो जाती है तो कही बच्चों, नौजवानों , तितलियों, हवाओं की बाते करने लगती हैं कुछ शेर देखें
हटो करने दो अपने मन की भी इन नौजवानों को
ये इनका दौर है इनका समय है ,इनकी बारी है
तुम जिसे थे कोख ही में मारने की सोचते
कल बनेंगी वो सहारा देख लेना बच्चियाँ
ख़ुशबुएँ लेकर हवाएँ ख़ुद-ब -ख़ुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद खिड़कियाँ
आ गए वो सैर को,गुलशन में नंगे पाँव जब
झुक गयी लेने को बोसा , मोगरे की डालियाँ
ये तितलियों के रक्स ये महकी हुई हवा
लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में
बच्चों को अपना बचपन तो जीने दो
यूँ बस्तों का बोझ बढ़ाना , ठीक नहीं
मीरा क़बीर तुलसी नानक फ़रीद बुल्ला
गाते सभी हैं इनको किसने मगर गुना है
मीर तुलसी,ज़फ़र ,जोश ,मीरा,कबीर
दिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है
काँटे मिले या फूल क्या पता है राह में
'चल साथ ' तुमने जब कहा ,तैयार हो गये
क़िताब के शुरू में नीरज सर ने जिन दिग्गजों का आभार और ज़िक्र रहनुमां और गुरु के तौर किया है तो रदीफ़ काफ़िये और बहर के तराज़ू की तरफ देखना भी आपके लिए बेमानी है। मैं तो ख़ैर इन सब दिग्गजों के बीच कुछ कहने की हैसियत ही नहीं रखती हूँ।
क़िताब के हर शेर का ज़िक्र यँहा नहीं किया जा सकता पर किताब का हर शेर ज़िक्र के लायक़ है।
तभी तो वंदना गुप्ता जी किताब "डाली मोगरे की के लिए कहती है .............................. .....
"जो खुद को खुद पढवा ले सब काम छुडवा कर उस संग्रह में कुछ तो ऐसा होगा ही जो खास होगा हर आम से बस ऐसा ही कुछ इस संग्रह के साथ हुआ कि इतनी व्यस्त होने के बावज़ूद भी मैने सबसे पहले ये संग्रह पढा और अब खुद के विचार व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं सकी ।
वंदना गुप्ता "
श्री सत्य व्यास जी नीरज जी को सच्चाई का शायर मानते हुए लिखते हैं कि ..............................
"नीरज, दुष्यंत की लीक के शायर हैं जो हिन्दी उर्दू और फारसी को अदब के लिहाज़ से मुख्तलिफ ज़ुबान नहीं मानते । उनकी गज़लों मे ज़ुबान इस हद तक जज़्ब हो जाती हैं कि आप बस गज़ल के मुरीद हो जाते हैं। नीरज़ की तखलीख के कायल हो जाते हैं।
सत्य व्यास "
श्री सौरभ पाण्डेय जी की बहुत सुन्दर भाषा में लिखी गई किताब की समीक्षा के कुछ अंश ...........................
"जिस लिहाज़ से नीरजजी ने ज़िन्दग़ी को जीया है, वे अनुभवों की अतुल्य समृद्धि के धनी न हों, यह हो ही नहीं सकता है. सीखे और समझे हुए को साझा करना मानवीय कर्तव्य का सबसे सकारात्मक पहलू है. इस साझा करने में भाषा अक्सर स्वतंत्र हो जाती है, अंदाज़ फक्कड़ हो जाता है. आश्चर्य नहीं कि रह-रह कर आपके कहे में कई बार कबीर बोल उठते हैं, तो कभी रैदास जी उठते हैं."
सौरभ पाण्डेय "
श्री मयंक अवस्थी जी लिखते हैँ .............................. .........
"नीरज ग़ज़ल के दीवाने हैं और दीवानगी क्या नहीं कर सकती – एक क़ैस पूरे दश्त को आबाद कर देता है और एक फरहाद पहाड़ काट देता है !!! नीरज भी ग़ज़ल को पढते नहीं जीते हैं और इसकी निशानदेही उनका ब्लाग करता है जो एक बागे - रिज़्वाँ का नज़ारा पेश करता है"
"डाली मोंगरे की" पहला मरहला है इस शाइर के सफर का और –निश्चित रूप से नीरज सारी प्रशंसा और सारे प्रोत्साहन के हकदार हैं। इस संकलन में 98 गज़लें हैं –जो अनुभूति और इज़हार के सन्योग या द्वन्द से उपजी हैं। ये गज़लें ख्याल की दृष्टि से औसत , भाषा की दृष्टि से बड़ी हद तक निर्दोष और स्वीकार्य और प्रयास की दृष्टि से बिना रुके ताली बजाने के इम्कान रखती हैं। तस्व्वुफ़ पिरोने की कोशिश नहीं की गई है जिसके लिये नीरज जी को बधाई और किसी अन्य शाइर की रिप्लिका बनने की कोशिश भी नहीं की गई है –जिसके लिये वे प्रशंसा के हकदार हैं।
मयंक अवस्थी"
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"डाली मोगरे की " किताब के बारे में इतना सब पढ़ कर दिल करता है न, कि इस डाली के माली इसके बारे में क्या कहते है, ये सुना जाये उन्हीं से ? मैंने नीरज सर को जब इस मुत्तालिक मैल किया तो वो लिखते है कि उन्हें इंटरव्यू देना पसंद नहीं। नीरज सर को करीब से जानने वाले जानते होंगे कि सर को हर बात पर बोलना पसंद है,सिवाय अपने खुद के बारे में। मैं भी उन से इंटरव्यू के लिए फिर से गुज़ारिश करती हूँ आप भी करें|अगर आप उनकी किताब के बारे में उन्हीं से सुनना चाहते हैं नेक्स्ट पोस्ट में मिलते हैं नीरज सर के इंटरव्यू के साथ|
क़िताब "डाली मोंगरे की".....
शायर श्री नीरज गोस्वामी जी
प्रकाशक ..…शिवना प्रकाशन
पी सी लैब ,सम्राट कॉम्प्लेक्स बेसमैंट
बस स्टैंड , सीहोर - 46601 (म प्र )
फ़ोन :07562405545, 07562695918
E-mail: shivna.prakashan@gmail.com
पारूल सिंह
parul singh
पारुल,
ReplyDeleteइतनी बढ़िया और सटीक समीक्षा के लिए बधाई ! "डाली मोगरे की " ग़ज़ल के आँगन को इस कदर महका रही है कि पाठक "लाली मेरे लाल की मैं भी हो गयी लाल " की तरह खुशबू को स्वयं में अनुभव करता है ! नीरज जी ! पाठक इस मोगरे के डाली के माली को और अच्छे से जानना चाहते हैं और आप उन्हें इससे महरूम नहीं कर सकते ! सो एक इंटरव्यू तो बनता है !
सर्व
bhut badhiya likha hai apne
ReplyDeleteaap is writing ko book convert krna chahte hai
how to self publish a book in india
बहुत ही उम्दा शब्दों में मन-प्राण महकाती हुई समीक्षा, मोगरे की यह डाली हमेशा हरी भरी रहे और अपनी महक वेब दुनिया में बिखेरती रहे...
ReplyDeleteबहुत बातें छुपी है दिल में,
ReplyDeleteभी तुम पास बैठो तो सुनाएँ
तुम बिन मेरे इस दिल को
दुनिया से नाराजी है
चाहते मेमने सी भोली है
पर जमाना बड़ा कसाई
शानदार जबर्दस्त जिंदाबाद नीरज सर, आपकी शायरी ओर पारुल मैम की समीक्षा के आगे निशब्द हूँ बस यही कहूंगा अगली किताब डाली मोंगरे की....