Tuesday, September 23, 2014

बहुत जी चाहता है।


सुन रहे हो,
कई बार मन करता है। 
बहुत जी चाहता है। के,
दुनिया की सारी 
व्हील चैयर्स के पहियों को
पैरों में तब्दील कर दूँ।
तेज दौड़ने वाले पैरों में,
और लगा दूँ उन सब को
जो बैठे हैं उन कुर्सियों पर
कहूं, जाओ भागो, दौड़ो,
खड़े होकर कैसी दिखती है
ये दुनिया देखो।
चलने से रगो में कैसा
महसूस होता है लहू महसूसों।

कई बार मन करता है।
बहुत जी चाहता है। के,
बिन बाँहों के जो लड़ रहे हैं दुनिया से
और जो निसक्त पड़े हैं बिस्तरों पर
उन्हें लताओं की बांहें दे दूँ,
मोगली की फुर्ती दे दूँ,
और कहूं जाओ,
अब हो जाओ गुत्थम गुत्था
खूब खेलो कराटे,
चख कर देखो अपने हाथ से
मुँह में निवाला डालने का मज़ा।

कई बार मन करता है।
बहुत जी चाहता है। के,
वो जिनमे कम है अक्ल,कहते हैं हम,
उन्हें थोड़ी मेरी, थोड़ी तुम्हारी
थोड़ी इसकी, थोड़ी उसकी
चुटकियाँ भर-भर अक्ल दे दूँ
कहूं के देखो अपने ही सहारे
जीने का मज़ा क्या होता है,
अपने काम खुद करना
कितनी तस्सली देता है।देखो।
अकेले अपने फैसले लेकर,
अकेले रहकर,घूमकर, जीकर।देखो।
और वो जो थोड़ी सी साजिशें,गोलमाल,
झूठे वायदे,दुनिया खत्म करने के इरादे,
हम करते हैं तुम सब भी करो यारों।

मेरा बहुत मन करता है।
सच बहुत जी चाहता है।
पर मैं कुछ भी नहीं कर पाती।
झूठ कहते थे तुम कि
" तुम सब कुछ कर सकती हो"
देखो। मैं कुछ नहीं कर सकती।
झूठे हो तुम।



                             पारुल सिंह

Friday, September 5, 2014

पुस्तक परिचय : "कुछ फ़ूल अमलतास के" कवियत्री : सर्वजीत 'सर्व'

क्या तुमने कभी मेरी तरह शबनम के मोती दोनों हाथों में समेटे हैं ?  
क्या तुमने कभी बूंदों का हाथ पकड़ बादलो तक पहुँचना चाहा है ?
क्या तुम्हे भी सावन में मेरी तरह अपना बचपन याद आया है ?

सुप्रसिद्ध कवियत्री सर्व जीत सर्व जी की लिखी ये पंक्तियां पढ़ कर क्या आपको भी अपना बचपन याद आया है? ये पंक्तियां सर्व जी की पुस्तक  "कुछ फूल अमलतास के " से ली गयी उनकी एक बहुत खूबसूरत कविता की हैं। "कुछ फूल अमलतास के " सर्व जी का कविता संग्रह हैं। 
सर्व जी को नरम और नाज़ुक शब्दों से रेशमी भावों  का ताना बुनने में महारथ हासिल हैं जब भी आप उन्हें पढ़ते हैं तो आप इन्हीं भावों की गलियों से गुजरते हैं  जो कि आपके ह्रदय और आत्मा को अंतर तक तृप्त और प्रफुल्लित कर देतें हैं। 
                                 
आज धूप खिलखिलाती हुई आई 
आँचल में हरसिंगार के कुछ फूल समेटे,
तो मैंने दोनों हाथ फैलाकर समेट लिया 
इन फूलो में बसी ,सौंधी-सी महक को, 
जो शायद आज तुम्हारे आने का पैग़ाम ले कर आई हैं 

सर्व जीत सर्व दिल्ली के साहित्यिक जगत का एक जाना माना नाम है। "कुछ फूल अमलतास के " के अलावा सर्व जी की तीन और पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "मैं गजल बनूँ तुम्हारी " ,"त्रिअंजलि " और "किमख़ाब सी ये जिंदगी" । 

सर्व जी की कविताएँ चाँद सितारों ,बाग़ ,बहारों से अपने बचपन का पता पूछती हैं तो कंही बूढ़े सूरज से अपनी खुशिओं और सपनो की पोटली थामती हैं, तो कंही बड़ी सुहानी सी सुबहों का स्वागत करती हैं। 

सुबह सुबह जब भी खिड़की पर एक धीमी-धीमी सी दस्तक होती है ,
तो समझ जाती हूँ मैं की धूप की नन्ही किरण है, जो कुछ शर्माती ,
सकुचाती और मुस्कुराती है मेरे आँगन में, 
नए सवेरे को साथ ले  
एक और उम्मीदों भरे दिन को पहुँचाने आई है। 

सर्व जी की कवितायें हमे कभी रिश्तों के आसान सफर पर ले चलती हैं तो कंही कंही रिश्तों की ऊबड़ खाबड़ ज़मीन भी है। स्त्री मन की सभी संवेदनाएं , दर्द ,अनकहे शिक़वे और समझौते भी यें कवितायें बहुत अच्छे से बयान करती हैं। 

एक रिश्ता निभाना होता है
और एक होता है रिश्ते को जीना, 
कई रिश्ते कितनी गिरहों में बंधे रह जाते हैं, 
कई रिश्ते साँस नहीं ले पाते,
घुटन में ही जीवन बिता देते हैं। 
आओ, हम हर गिरह को खोल कर, इन्हें खुली हवा में साँस लेने दें 
और मिलकर तय करें बाकि का सफर रिश्तों को निभाकर नहीं, जीकर !

………………………………… 

तुमने बरसों पहले मेरा हाथ पकड़ा और कहा--
"चलो मेरे साथ सपनों की दुनिया में। "
मैंने पूछा --
"सपने मेरे या तुम्हारे ?"
तुम्हारा जवाब  खामोशी से कदम तेज -तेज बढ़ाता रहा 
मैं ,हांफती हुई तुम्हारे साथ चलने की कोशिश करती रही। 
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हाथ बढ़ा कर तुम्हे छूने की कोशिश में मुझे बरसों लगे
और अब जब मुझे लगा कि तुम्हें छू लूंगी,
पा लूंगी तो पाया 
तुम दूर बहुत दूर और दूर होते गए हो 
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तुमने विश्वास दिलाया तो मैंने हिचक का पर्दा उठाया 
और तुम्हें दिखाए ज़ख्म अपने मन के -
कुछ बरसो पुराने कुछ ताजे भी !
तुमने विश्वास दिलाया की मरहम बनोगे तुम 
मेरे दर्द के हमदम बनोगे तुम। 
तुम लौटे तो … पर मरहम लेकर नहीं नश्तर लेकर ! और अब
जब -तब हर बार, बार बार तुम उन्हीं ज़ख्मों में नश्तर चुभोते हो,
क्यूंकि तुम जानते हो की दुखता कंहा हैं !

क़िताब "कुछ फूल अमलतास के " जँहा खुद को खोजने की एक यात्रा है वंही सर्व जी के सामाजिक सरोकारों पर्यावरण के लिए उनकी  संवेदनशीलता ,आध्यात्मिकता और धर्मनिरपेक्षता को भी उजागर करती हैं कुछ कविताओं में इसकी बानगी देखी जा सकती है। 

कौन हूँ मैं ?ये खुद से पूछूँ क्या हूँ मैं ? ये जानना चाहूं 
 चाहो तो तुम मुझे ढूंढ ,मुझसे  मेरी पहचान करा दो तुम !  
  

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मैं ,मैं तो पानी हूँ ! अंजलि में सहेज रखना मुट्ठी में बांधना नहीं! 
मैं , एक सपना हूँ आँखों में संजो सको तो अच्छा पर आंसू समझ कर 
आँख से गिराना नहीं !

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खुदा शायद इक जुलाहा है -
जो जिंदगी का ताना -बाना 
बुनता है और उधेड़ देता है। 
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मैं अक्सर सपने में देखती हूँ कि,
सब कुछ जल रहा है,
लोग भयभीत से इधर उधर भाग रहे हैं 
जगह शायद कंधमाल या गोधरा या फिर 
दिल्ली सी लगती है। -मैं नंगे पांव बदहवास सी 
भाग रही हूं और एक भीड़ मेरे पीछे कई नंगे हथियार 
लिए चिल्लाती हुई 
"पकड़ लो"
"मार लो "
"छोड़ना नहीं"
"मुसलमान है "
"हिन्दू हैं "
"सिक्ख हैं"
"ईसाई है"

और दूर लॉउडस्पीकर पर 
एक पुरजोश आवाज़ आ रही है 
"एक धर्म -निरपेक्ष और सुरक्षित 
भारत के लिए हमें वोट दीजिए !"

…………………………… 
दिल को झंकझोर देती है इस तरह की कविताएँ और जब आपको सोचने को मजबूर कर दे कोई रचना तो ये ही उसकी सफलता है। अक़्सर कविताएं सांकेतिक होती हैं और उनमें अपने अनुभव अंतर्निहित होते हैं जो भावों द्वारा कविता में परिलक्षित होते हैं। सर्व जी की कवितायें अलग अलग बिम्बों और प्रतीकों से अपने भाव पाठक तक पहुँचाने में समर्थ हैं। 

चलो सखी ……
कुछ सपने देखें,
कभी सांझ में 
कभी दुपहरे।

इनमें तुम कुछ रंग भर देना थोड़े हल्के ,
थोड़े गहरे। 
…………………………… 


कितने सुन्दर शीतल ,भीने अमलतास ने 
फूल बिखेरे !कुछ हल्के और कुछ हैं गहरे एक हंसी से लगें 
सुनहरे !

सच में सर्व जी की ये पुस्तक एक यात्रा ही है जीवन की सच्चाइयों की किसी भीने अमलतास के फूल सी। जिसमें कुछ नरम नाजुक से भावों की सैर लाज़मी हैं। 

इस पुस्तक या सर्व जी की कविताओं के लिए सर्व जी से उनके ईमेल आई डी या फ़ोन नंबर पर संपर्क किया जा सकता है। 



sarawjeetsarv@gmail.com , Mobile No 09899773323 . 

सर्वजीत 'सर्व जी की पुस्तक 'कुछ फूल अमलतास के' मंजुली प्रकाशन ,नयी दिल्ली से प्रकाशित है। 

मंजुली प्रकाशन ,नयी दिल्ली 
पी -४ पिलंजी सरोजिनी नगर ,नयी दिल्ली -११००२३ 
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