Thursday, November 26, 2015

"चाय"

 उन चुस्कियों की लज्ज़त कमाल थी ....
सवेरे सवेरे
हमारी बालकनी में 
ठंडी हवा 
झूमते मनी प्लांट 
झूलती बोगनवेलिया 
के इशारों पर 
जो उनके साथ ली जाती थी
सुबह की पहली l की 
उन चुस्कियों की लज्ज़त कमाल थी

जरा जरा जागे
जरा जरा नींद में वो 
ऊँघती मेरी जम्हाईयों से
लडती मेरी अँगड़ाईया 
आस पास के फ्लैट्स से घिरी
वो महफ़िल सी तन्हाईया 
दाल चीनी 
अदरख,तुलसी की महक 
साँसों में घुलती थी 
वो चाय की चुस्कियां बेमिसाल थी 

अब वो बनाए या मैं 
चाय मे वो खुश्बू ही नहीं आती 
चाय का स्वाद कसैला हो गया 
अब चाय पीयी जाती है
चुस्कियां नहीं ली जाती 
हालाकि हम तब भी चुप रह कर
चाय पीते थे, और अब भी
पर ये चाय बड़ी कमाल चीज है
इसका स्वाद दिल के
मिलने से आता है 
दिल में दरारे हों तो
इसका स्वाद भी दरक जाता है …….
                         🍀पारूल🍀

2 comments:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....

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