आवश्यकता निमित एक देह मात्र मै
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इसके आगे लिख नहीं पाती
जब जब भी
अंतर्मन में भावो का बवंडर उठता है
इतना तेज होता है कि
शब्दों के सांचो मे
भाव टिक ही नहीं पाते
भाव ममता , स्नेह और प्यार के
जिन पर अपने व्यर्थ होने का भाव भारी है
अंतर्मन में
मेरे "भाव" "शब्द" और "मै"
हम तीनो ही प्रसव पीड़ा से गुजरते है
पर कविता कागज पर नहीं आ पाती
देर सवेर इस पीड़ा से गुजर
हर कविता अंतर्द्वंद जीत जाती है
किन्तु मेरी इस कविता की किस्मत मे
केवल प्रसव पीड़ा है
ये आकर रूप नहीं ले पाएगी
ये आज भी मेरे साथ है
"मै" ,मेरे "भाव" और "शब्द"
हम तीनो ही
आज फिर इस प्रसव पीड़ा से गुजरे हैं
इसी पीड़ा मे बुदबुदाती रही हूँ
आवश्यकता निमित एक देह मात्र मै
....
......
इसके आगे आज भी नहीं लिख पाई .....
पारूल सिंह
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