तुम संग भी गुमसुम
तुम बिन भी गुमसुम
तुम बिन भी गुमसुम
रहती हूँ।
तरसते थे जिसके दिन रात
तुम्हे कहने सुनने को
मै वही हूँ ?
स्वयं से पूछती रहती हूँ।
अब दिल तुमसे कुछ कहने को
कुछ सुनने को
करता ही नहीं
दिल का भी दिल भर गया होगा शायद
जैसे ....
तेरे प्यार का इंतजार अब और करने से
मेरा दिल भर गया है।
पारुल सिंह
पारुल सिंह
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