1.
बर्फ से गुजर कर आई सी
ठण्डी आह के साथ
दोनो हाथ मजबूरी मे टिका कर
थोड़ा गर्दन को झुका कर
हम कह तो देते हैं
किसी के छोड़ जाने से पहले
ठण्डी आह के साथ
दोनो हाथ मजबूरी मे टिका कर
थोड़ा गर्दन को झुका कर
हम कह तो देते हैं
किसी के छोड़ जाने से पहले
"अच्छा ठीक है,
जो तुम कहो,
जैसा तुम चाहो,
जो मर्जी तुम्हारी "
जो तुम कहो,
जैसा तुम चाहो,
जो मर्जी तुम्हारी "
पर किस तरह मर-मर कर
झेलता है तन-मन
किसी के जाने के बाद
उसका जाना,
उसका कहना,
उसका चाहना,
उसकी मर्जी ।
झेलता है तन-मन
किसी के जाने के बाद
उसका जाना,
उसका कहना,
उसका चाहना,
उसकी मर्जी ।
जब रिश्ते मे आने का फैसला
दोनों का होता है
तो वापस जाना,
कब क्या कहना है,चाहना है,
ये मर्जी क्यूं किसी एक की ही होती है?
दोनों का होता है
तो वापस जाना,
कब क्या कहना है,चाहना है,
ये मर्जी क्यूं किसी एक की ही होती है?
क्या कभी अहसास होता है जाने वाले को
कि किस तरह कँहा-कँहा से
क्या-क्या ठगा गया,ये कहने वाले का?
कि किस तरह कँहा-कँहा से
क्या-क्या ठगा गया,ये कहने वाले का?
"अच्छा ठीक है,
जो तुम कहो,
जैसा तुम चाहो,
जो मर्जी तुम्हारी ".....
जो तुम कहो,
जैसा तुम चाहो,
जो मर्जी तुम्हारी ".....
पारुल सिंह
2 .
जिस तरह बेआवाज चले आए थे
वैसे ही बेआवाज चल दिये हो तुम जिन्दगी से
बहुत कुछ मुझे देकर,
मगर जो चल दिये लेकर,
उसका अफसोस सलीके से तुम्हें याद भी नही करने देता।
वैसे ही बेआवाज चल दिये हो तुम जिन्दगी से
बहुत कुछ मुझे देकर,
मगर जो चल दिये लेकर,
उसका अफसोस सलीके से तुम्हें याद भी नही करने देता।
.....चली आई हूँ तुम्हारे पीछे
वापस लौट चलने की मिन्नतें करने नही,
अपने विश्वासों की पोटली छीन लेने
तुम ले आए थे बगल मे दबाकर जिसे
वापस लौट चलने की मिन्नतें करने नही,
अपने विश्वासों की पोटली छीन लेने
तुम ले आए थे बगल मे दबाकर जिसे
तरह तरह के विश्वासों भरी पोटली
रिश्तों,लोगों,बातों,परिभाषाओं और
रिश्तों,लोगों,बातों,परिभाषाओं और
सब से बढ़ कर,मेरा खुद पर विश्वास
सब ही तो ले चले थे तुम।
......अब जाओ करो,जो चाहो
मैने लाकर,आँगन मे,चूल्हे के पास
खूंठी पर टांग ली है वो पोटली
जब जिस सफर पर निकलूँगी
साथ ले चलूंगी अपने विश्वास
खूंठी पर टांग ली है वो पोटली
जब जिस सफर पर निकलूँगी
साथ ले चलूंगी अपने विश्वास
बहुत लेन-देन करना है अभी
जिंदादिली और खुशियों का।
जिंदादिली और खुशियों का।
मुझे फिर से करना है
रिश्तों,लोगों,बातों,परिभाषाओं
और सब से बढ़ कर खुद पर विश्वास
पारुल सिंह
............. अनुपम भाव संयोजन
ReplyDeleteRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर पुरानी डायरी के पन्ने : )