जानलेवा यें तन्हाईया नहीं भाती
क्यूँ सदा भी कोई इधर नहीं आती
एक जरा सी किरण भी उजाले की
इस तीरगी मैं नज़र नहीं आती
इस तीरगी मैं नज़र नहीं आती
कुछ तेरा गम कुछ अपनी मसायल
नींद अब शब भर नहीं आती
नींद अब शब भर नहीं आती
जब आने का वादा कर जाता है वो
बस फिर सहर नहीं आती
बस फिर सहर नहीं आती
वो जो कहते थे हरदम हूँ साथ
ख्वाबो मैं भी शक्ल नज़र नहीं आती
ख्वाबो मैं भी शक्ल नज़र नहीं आती
दिल बेकरार पुरजोर हो चला तेरा
बहलने की सूरत नज़र नहीं आती
बहलने की सूरत नज़र नहीं आती
बहुत अच्छी रचना है आपकी...थोडा सा प्रयास करें आप ग़ज़ल कहना सीख जाएँगी...आपके पास भाव और भाषा दोनों हैं...बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनीरज
नीरज जी बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए .....जी अभी बहुत कुछ सिखने की जरुरत है मुझे..
ReplyDeleteबढ़िया प्रयास पारुल जी...
ReplyDeleteनीरज जी ने सही कहा.....
ढेर सारी शुभकामनाएं.........
अनु
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ReplyDeleteआदरणीया पारुल जी
नमस्कार !
जब आने का वादा कर जाता है वो
बस फिर सहर नहीं आती
वाऽऽह… !
अच्छे भाव सुंदर शब्दों में ढल गए हैं …
…आपकी लेखनी से और सुंदर रचनाओं का सृजन हो …
शुभकामनाओं सहित…
अनु जी और राजेंद्र जी होसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया ...
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी कविता में भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी है .उम्दा पंक्तियाँ .
यूँ तो तेरी याद कभी अकेले नहीं आती
ReplyDeleteये अपने साथ तेरी बाते ,वो अफसाने
मेरी चुप्पी ,तेरे अहसास , क्या -क्या नहीं लाती
बहुत सुंदर लिखा है दीदी