Monday, August 21, 2017

ये पास वाले मोड़ से पहले सड़क किनारे 
चुपचाप ठुंठ खडे पेड़ के अन्तर्मन में 
बड़ी चहल पहल है आजकल।
चुपचाप इसलिए क्योंकि शोर मचाने को 
उसके पास कुछ नहीं 
ना टहनी ना पत्ते
वरना पेड़ कभी चुप नहीं रहते 
हवा के साथ जबरदस्त रोमांस 
चलता है उन का।

हवा के इशारों पर झूम कर
नाच-नाच कर
झूनन-झूनन की आवाजें करना 
और टहनियां फैला-फैला कर 
पत्तियों को झटकना।
हवा कम हो के ज्यादा 
दिन में जागते और 
रात को सोते हुए 
ये ही काम उनका।

झूनन-झूनन झूनन

सड़क किनारे के पेड़ों को 
एक और सुविधा रहती है 
ना हो हवा तो आते जाते वाहन 
उन्हें कान पकड़ इधर से उधर तक 
खींचें चले जाते हैं 
अपनी गति की हवा से 
झूनन-झूनन झूनन

हाँ तो उस चुपचाप खड़े पेड़ के 
अन्तर्मन में बड़ी चहल पहल है 

पास के जल संस्थान का पानी 
जब ओवर फ्लो होता तो नाले से
सड़क पर फैल जाता 
ना नाले का पानी कम था, ना बरसात का।

जाने किस की नज़र लगी थी कभी उसे
और अब ना जाने कौन गली की हवा 
किस तरह उसका शरीर छू गई कि 

उस ठूंठ पेड़ के सीधे सपाट तनों में 
कुछ कौंपले फूटने लगी हैं 
इधर उधर फैलीं गिनती भर की 
शाखाओं में भी कहीं-कहीं 
गोल-गोल गांठो को हरी-हरी
नौकों से फोड़,कुछ कौंपले
झांकने लगी हैं।
आँखें झपका-झपका  उचक कर
विस्मित सी देख रही हैं 
नई दुनिया को 

बड़ी सुगबुगाहट है पेड़ के अन्दर 
वो कुछ और तन कर खड़ा हो गया है।
अब तक तो 
यहाँ खड़े-खड़े अनमना,भावहीन 
आते जातो को देखता था वो 
आखों से ही उन्हें 
सड़क के एक किनारे से दूसरे तक छोड़ता,
ऊंघता रहता 
अपने हालातों से समझौता कर चुका था 
पर इन हरी कौंपलों ने तो
उसके दिन फेर दिये।
वो अब अपने आसपास के 
उन पेड़ों में जो शामिल होने जा रहा है 
जो अपनी पत्तियों और टहनियों को
हवा में लहरा कर झूमते हैं 
झूनन-झूनन झूनन


जिन्हें देख कर उसके मन में कोई भाव ही 
ना आते थे 
बस वो अपने ही खोल में ऊंघता रहता था 
पर अब वो भी उनके जैसा 
फलों-फूलों टाईप होने जा रहा है 
तो इस फलने-फूलने के भाव को
समझ पा रहा है।
ये भाव उसे आनन्दित कर रहे हैं
उसके भी झूमने के दिन आने वाले हैं 
झूनन-झूनन झूनन
वो पूरे जोग से अपनी कौंपले समेटे
अभी से झूम रहा है 
झूनन-झूनन झूनन
पारूल

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