Saturday, September 9, 2017

प्रेम गली अति सांकरी

प्रेम वही है जिसमें सम्पूर्ण समर्पण हो पर स्वाभिमान के साथ। प्रियतम भी वही है जिसे संपूर्ण समर्पण तुम्हारे स्वाभिमान के साथ स्वीकार्य है।जो तुम्हारे सम्पूर्ण समर्पण के साथ तुम्हारे स्वाभिमान के लिए भी सजग हो। प्रेम को समझना है तो सम्पूर्ण समर्पण व स्वाभिमान के मध्य की महीन रेखा को समझना होगा। अहम या मैं व स्वाभिमान के अन्तर को समझना होगा। जिस तरह तुम्हें रीढ़विहीन प्रेमी नहीं चाहिए उसी तरह प्रियतम को भी रीढ़विहीन प्रेमिका पसंद नहीं है। जो तुमसे स्वाभिमान त्यागने की इच्छा करे वह प्रेम नही। और स्वाभिमान त्यागने की प्रवृत्ति तुम में है तो तुम गुलामी में हो प्रेम में नही। प्रेम आजादी देता है गुलामी कदापि नही। जीवन में जब भी घुटन जान पड़े तो समझो किसी वस्तु,आदत,स्थान,व्यवस्था या व्यक्ति की गुलामी में हो। जब सारा खुला आकाश,धरती व छितिज उड़ने,कुलाचे भरने, खुली वायु में स्वास लेने को तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो तो समझ जाओ तुम प्रेम में हो।
पारूल 🙂

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