Monday, September 4, 2017

सतरंगी छ़ाता


 आज मुझे अपने facebook पेज के लिए एक पोस्ट लिखनी थी मैं कल से ही लिखने में लेट हो जा रही थी कभी किसी वजह से कभी किसी वजह से कई बार टॉपिक को लेकर ही कंफ्यूज थी खैर लिखने बैठी तो   आदतन अपने कमरे की बालकनी से बाहर हो रही बारिश देखने लगी तभी मेरे सामने वाली बिल्डिंग की एक बालकनी में एक लड़की निकल कर आई। उसने दो तीन बार ऊपर आसमान को देखा और फिर दोनो हाथ आगे बालकनी से बाहर निकाल दिये शायद बारिश को महसूस कर रही थी। फिर झट से अंदर गई और रेनबो के सात रंगों का एक छाता लेकर आई।और छाते को ओढ़ ले कभी हटा दे,फिर थोड़ी देर भीगे फिर छाता सर पर तान ले कभी छाता रख दे और अपने बालों को लहरा कर बालकनी में घूमे तो कभी उछल उछल कर छपाक करे। मेरे चेहरे पर बरबस ही मुस्कान आ रही थी और मैं सब भूल कर उसे बारिश का लुत्फ उठाते देख रही थी। फिर उसने छाते को बालकनी से बाहर फैला दिया,हवा तेज थी,छाती पलट़ गया।जैसा की हम सब ने महसूस किया होगा ये तजुर्बा मुझे लगा अब ये छाता रख देगी,पर नही,उसने तो छाते को दोनो हाथों से फिरकी की तरह घुमाना शुरू कर दिया । छाता बहुत सुन्दर लग रहा था, छाते की सारी डंडिया सात रंगों के हाथ ऊपर उठाए गोल-गोल घूम कर नाच रही थी जैसे। घुमाते-घुमाते वो था तो को अपने सर पर ले गई हवा का दबाव दूसरी तरफ बना और छाया सीधा हो गया। लड़की को क्या करना है ये उसकी समझ में आ गया था। अब तो वो बार-बार छाते को बालकनी से बाहर निकाले,छाता पलट जाए।छाता पलटे तो उसे सर पर ले जाकर घुमाए, छाता फिर सीधा हो जाए। फिरकी की तरफ घूमना घुमाना चलता रहा उस लडकी,महिला या औरत का।वो काफी दूर थी तो ये मालूम होना मुश्किल था। और इस से कोई फर्क भी नही पड़ता कि वह किस उम्र की थी। फर्क पड़ता था तो इस बात से कि उसने अपने सतरंगी छाते को खुशी खुशी घुमा कर रख छोड़ा था। छाता उल्टा हो या सीधा। उसे दोनों हालात में छाता को घुमाने में आनंद आ रहा था। बल्कि इस छाते के खेल में उसे ज्यादा मजा तब आना शुरू हुआ जब छाता पलट कर उल्टा हो गया था। उस के बाद तो उसने छाते को फिरकी बना दिया। इसे कोई परवाह ही नही थी कि बाकी की दो हजार बाल्कनियों से कोई उसे देख रहा था या नही।  वो तो बस मग्न थी। वो उसका छाता और बारिश।मैनें देखा और किसी भी बालकनी में कोई नही था। क्या दो हजार लोगों में किसी के पास भी सतरंगी छाता नही था? है दोस्तों उन दो हजार के पास भी है और हम सब के पास भी है । हमारी ये ज़िन्दगी सतरंगी छाता ही तो है। बारिश इस छाते की उमर है। छाते का सीधा रहना इस ज़िन्दगी के सुख और उल्टा होना दुख। फिर हम क्यूँ नही घुमा घुमा कर मजे लेते इस ज़िन्दगी के? दुख हो के सुख ज़िन्दगी को फिरकी बना कर क्यूँ नही मजा लेते इसका? दोस्तों समझ रहें हैं ना! मजा फिरकी घुमाने में है। छाता उल्टा हो के सीधा। बल्कि छाता उल्टा हो यानि दुख में जब छाते को घुमाते है तो उसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है। 

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